भारत और रूस की दशकों पुरानी रणनीतिक साझेदारी ने एक बार फिर अपनी मजबूती साबित की है। हाल ही में सम्पन्न हुए ऑपरेशन सिंदूर में रूसी सैन्य तकनीक ने भारत को निर्णायक बढ़त दिलाने में केंद्रीय भूमिका निभाई। मिसाइलों से लेकर वायु रक्षा प्रणाली, लड़ाकू विमान से लेकर इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तकनीक—हर स्तर पर रूसी सहयोग चमका।
4-5 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच होने वाली शिखर वार्ता से इस सहयोग को और गति मिलने की उम्मीद है। भारत S-400 मिसाइल प्रणाली की अतिरिक्त खरीद पर विचार कर रहा है, जो ऑपरेशन सिंदूर में अत्यंत प्रभावी साबित हुई।
नीति आयोग के सदस्य और प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ. वी.के. सारस्वत ने The Indian Witness से कहा कि भारत-रूस रक्षा सहयोग कई दशक पुराना है। 1970 के दशक से रूस द्वारा दिए गए SAM-2 मिसाइल, विभिन्न MiG लड़ाकू विमान और T-90 टैंक भारत की रक्षा क्षमता का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।
और पढ़ें: पुतिन की भारत यात्रा से पहले रूस भारत के साथ महत्वपूर्ण सैन्य समझौते को मंजूरी देने की तैयारी में
उन्होंने बताया कि यह रिश्ता अब खरीदार-विक्रेता से आगे बढ़कर तकनीकी साझेदारी में बदल चुका है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ब्रहमोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, जिसने ऑपरेशन सिंदूर में अद्भुत प्रदर्शन किया। शत्रु क्षेत्र में सटीक प्रहार करने की क्षमता ने इसे विश्व में अद्वितीय स्थापित किया।
उधर, S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलों को बेअसर किया और भारत के आकाश की सुरक्षा सुनिश्चित की। वहीं, सुखोई लड़ाकू विमानों ने आक्रामक अभियानों में अहम भूमिका निभाई।
भारत-रूस सहयोग केवल रक्षा तक सीमित नहीं है; परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान और पनडुब्बी तकनीक में भी दोनों देशों की साझेदारी गहरी है। डॉ. सारस्वत के अनुसार यह संबंध समय की हर कसौटी पर खरा उतरा है और आज भी सबसे विश्वसनीय साझेदारी माना जाता है।
ऑपरेशन सिंदूर इस दोस्ती की मजबूती और सामरिक महत्व का प्रतीक बन गया है—ब्रह्मपुत्र से लेकर मॉस्को नदी तक यह सहयोग आज भी निर्बाध रूप से बह रहा है।
और पढ़ें: पुतिन की भारत यात्रा से पहले रूस भारत के साथ महत्वपूर्ण सैन्य समझौते को मंजूरी देने की तैयारी में