एक नए अध्ययन में पाया गया है कि असम के डिब्रू-सैकहोवा राष्ट्रीय उद्यान में आक्रामक प्रजातियों के साथ-साथ कुछ स्वदेशी पौधे भी तेजी से फैल रहे हैं, जो इस क्षेत्र की प्राकृतिक संरचना को बदल रहे हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान भारत में जंगली (फेरल) घोड़ों का एकमात्र आवास है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, अब तक आक्रामक प्रजातियों को ही जैव विविधता के लिए खतरा माना जाता था, लेकिन इस अध्ययन में कम से कम दो स्वदेशी पौधों को भी घास के मैदानों के लिए हानिकारक पाया गया है। इन पौधों का अनियंत्रित विस्तार जंगल की पारिस्थितिकी को बाधित कर रहा है और घास के मैदानों की प्राकृतिक विविधता को नष्ट कर रहा है।
डिब्रू-सैकहोवा राष्ट्रीय उद्यान ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित एक अद्वितीय द्वीप-सदृश क्षेत्र है, जहां दुर्लभ पक्षियों, जलीय जीवों और जंगली घोड़ों की विशेष आबादी पाई जाती है। अध्ययन में कहा गया है कि यदि इस विस्तार को रोका नहीं गया, तो यह उद्यान के पारिस्थितिक संतुलन और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या से निपटने के लिए आक्रामक और स्वदेशी दोनों तरह के विस्तारशील पौधों की समयबद्ध पहचान और नियंत्रण जरूरी है। वन विभाग और शोध संस्थान मिलकर इस दिशा में प्रबंधन योजना तैयार करने की संभावना तलाश रहे हैं।
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