अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सैन्य बल को पुलिसिंग भूमिका में इस्तेमाल किए जाने पर एक ऐतिहासिक मुकदमे की सुनवाई सैन फ्रांसिस्को में शुरू हो गई है। यह तीन दिवसीय, बिना जूरी वाला मुकदमा अमेरिकी जिला न्यायाधीश चार्ल्स ब्रेयर के समक्ष चल रहा है।
मामला इस बात पर केंद्रित है कि क्या ट्रंप प्रशासन ने 19वीं सदी में बनाए गए उस संघीय कानून का उल्लंघन किया, जो सैन्य बल को नागरिक कानून प्रवर्तन कार्यों में शामिल होने से रोकता है। यह कानून, जिसे Posse Comitatus Act कहा जाता है, सेना और नागरिक पुलिस के बीच स्पष्ट विभाजन बनाए रखने के लिए बनाया गया था।
विवाद की जड़ जून में लॉस एंजिल्स में सेना की तैनाती है, जब वहां अशांति और हिंसक घटनाओं के बीच व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैन्य बल भेजे गए थे। ट्रंप प्रशासन का कहना था कि यह कदम स्थानीय प्रशासन की मदद और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था।
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हालांकि, आलोचकों और वादी पक्ष का कहना है कि यह कार्रवाई संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन थी और इससे नागरिक अधिकारों पर आघात पहुंचा। उनका तर्क है कि घरेलू मामलों में सेना का उपयोग लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए खतरनाक मिसाल पेश करता है।
इस मुकदमे का परिणाम न केवल ट्रंप प्रशासन के फैसलों की वैधता पर असर डालेगा, बल्कि भविष्य में संघीय सरकार द्वारा सेना के घरेलू उपयोग के लिए भी मार्गदर्शन तय कर सकता है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अमेरिका में नागरिक-सैन्य संबंधों की सीमाओं को परिभाषित करने वाला ऐतिहासिक निर्णय साबित हो सकता है।
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