नए ग्रामीण रोजगार कानून को लेकर संसद और राजनीतिक हलकों में तीखी बहस छिड़ गई है। विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर महात्मा गांधी का अपमान करने का आरोप लगाया है और कहा है कि प्रस्तावित कानून मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की मूल भावना को कमजोर करता है। ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी VB-G RAM G विधेयक, 2025 को 15 दिसंबर 2025 को लोकसभा के कार्यसूची के पूरक एजेंडा में शामिल किया गया।
सोमवार को विपक्ष ने इस नए कानून को लेकर कई गंभीर सवाल उठाए। विपक्षी नेताओं का कहना है कि मनरेगा से ‘महात्मा गांधी’ का नाम हटाने के पीछे सरकार का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है और यह राष्ट्रपिता के योगदान का अपमान है। उनका आरोप है कि यह कदम केवल नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जरिए ग्रामीण रोजगार की अधिकार-आधारित व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।
विपक्ष ने यह भी कहा कि नया कानून राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डाल सकता है। मनरेगा के तहत केंद्र और राज्यों के बीच खर्च साझा करने की जो व्यवस्था है, उसमें बदलाव से राज्यों की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका जताई गई है। साथ ही, विपक्ष का दावा है कि मौजूदा कानून गरीबों को रोजगार की कानूनी गारंटी देता है, जबकि नया प्रस्ताव इस अधिकार को “मिशन मोड” में बदलकर कमजोर कर सकता है।
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आलोचकों का कहना है कि मनरेगा ने ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा, पलायन रोकने और सामाजिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में इसके ढांचे को “तोड़ने” या कमजोर करने से ग्रामीण गरीबों के हितों को नुकसान पहुंचेगा। विपक्ष ने सरकार से मांग की है कि वह इस विधेयक पर पुनर्विचार करे और महात्मा गांधी के नाम व अधिकार-आधारित स्वरूप को बनाए रखे।
वहीं, सरकार की ओर से अभी तक इन आरोपों पर विस्तृत प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस मुद्दे पर संसद में तीखी बहस के संकेत मिल रहे हैं।
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