सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की कुलपति नियुक्ति से जुड़ी याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। यह मामला प्रोफेसर नौशाद खातून की कुलपति पद पर नियुक्ति से जुड़ा है, जिस पर पक्षपात और हितों के टकराव के आरोप लगे हैं।
शीर्ष अदालत को बताया गया कि प्रोफेसर खातून को यह पद उनके पति द्वारा डाले गए महत्वपूर्ण वोट के बाद मिला, जो उस समय एएमयू के कुलपति थे। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता के मानकों पर खरी नहीं उतरती और इससे विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रन ने बिना कोई कारण बताए कहा कि वे इस मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग कर रहे हैं। अदालत अब इस मामले को किसी अन्य पीठ के पास भेज सकती है।
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एएमयू की कुलपति नियुक्ति का मुद्दा पहले भी विवादों में रहा है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नियुक्ति प्रक्रिया में पक्षपात हुआ और इससे संस्थान की साख पर असर पड़ा है। दूसरी ओर, समर्थकों का कहना है कि नियुक्ति प्रक्रिया विश्वविद्यालय के नियमों के अनुरूप हुई है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अगली सुनवाई के लिए नई पीठ गठित किए जाने के बाद ही यह तय होगा कि इस विवाद का आगे क्या होगा।
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