इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बहराइच के पुलिस अधीक्षक (SP) को निर्देश दिया है कि वे मामले की पूरी जांच करें, जिसमें कथित रूप से कुछ नाबालिगों को दंगे और अन्य गंभीर अपराधों में फंसाया गया। यदि यह पाया जाता है कि बच्चों को झूठे आरोपों में फंसाया गया है, तो अदालत ने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा है।
यह निर्देश न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार और न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की बेंच ने अक्टूबर 2025 में पारित आदेश में दिया। यह मामला बहराइच जिले के मोतीपुर थाना में 7 सितंबर 2025 को दर्ज एफआईआर से संबंधित है। शिकायतकर्ताओं पर दंगे, आपराधिक धमकी, शांति भंग करने के उद्देश्य से अपमान और संपत्ति नष्ट करने जैसे अपराधों के साथ-साथ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं में भी मामला दर्ज किया गया था।
शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनके 13 वर्षीय पुत्र और 11 वर्षीय पुत्री को भी झूठे आरोपों में फंसाया गया। उन्होंने कहा कि एफआईआर में उल्लिखित अपराधों की अधिकतम सजा सात वर्ष से कम है और उनकी गिरफ्तारी का प्रयास भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का उल्लंघन है।
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अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि नाबालिगों को झूठे आरोपों में फंसाया गया है, तो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। साथ ही बेंच ने आरोपियों को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि सहयोग न करने पर अदालत द्वारा दी गई सुरक्षा वापस ली जा सकती है।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि शिकायतकर्ता जांच में सहयोग करते हैं, तो उन्हें अनावश्यक परेशान नहीं किया जाएगा। यह आदेश न केवल बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करता है बल्कि पुलिस की जवाबदेही को भी सुनिश्चित करता है।
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