अरावली पहाड़ियों की नई समान परिभाषा को लेकर राजस्थान और सोशल मीडिया पर उठ रहे विरोध के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने स्पष्ट किया है कि अरावली क्षेत्र में खनन को लेकर किसी भी तरह की ढील नहीं दी जाएगी। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर जानबूझकर भ्रम और झूठ फैलाया जा रहा है।
रविवार को बयान जारी करते हुए भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार की गई अरावली की नई परिभाषा केंद्र सरकार के नेतृत्व वाले पैनल की सिफारिशों पर आधारित है। इस परिभाषा के अनुसार, अरावली पर्वतमाला को दो या अधिक पहाड़ियों के बीच 500 मीटर तक के क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है। मंत्री ने बताया कि इस नई परिभाषा के चलते अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएगा।
केंद्रीय मंत्री ने स्पष्ट किया कि यह परिभाषा केवल पहाड़ी की ऊंचाई, जैसे 100 मीटर, तक सीमित नहीं है, बल्कि पहाड़ी के आधार क्षेत्र (बेस एरिया) और उसके पूरे फैलाव को ध्यान में रखती है। उन्होंने कहा कि इस वैज्ञानिक और व्यापक दृष्टिकोण का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को और मजबूत करना है, न कि खनन गतिविधियों को बढ़ावा देना।
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भूपेंद्र यादव ने आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक और सामाजिक समूह इस मुद्दे पर गलत जानकारी फैला रहे हैं, जिससे आम जनता में यह धारणा बन रही है कि नई परिभाषा के कारण खनन को छूट मिलेगी। उन्होंने इसे पूरी तरह निराधार बताते हुए कहा कि सरकार अरावली के संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
उन्होंने यह भी कहा कि अरावली पर्वतमाला देश की पारिस्थितिकी के लिए बेहद अहम है, क्योंकि यह भूजल संरक्षण, जैव विविधता और जलवायु संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकार का उद्देश्य अरावली क्षेत्र को बचाना और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना है।
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