सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची सुधार प्रक्रिया (Special Summary Revision - SIR) को लेकर अहम टिप्पणी की है, इसे चुनाव आयोग के अधिकार और नागरिकों के मतदान अधिकार के बीच एक संघर्ष बताया।
पिटिशनर्स ने अदालत में कहा कि SIR प्रक्रिया में की गई हड़बड़ी और अवैध तरीके नागरिकों के मौलिक अधिकार – मतदान करने के अधिकार – को खतरे में डाल रहे हैं। उनका कहना है कि यह “नागरिकों के मतदान अधिकार को casually समाप्त करने का तरीका” बन गया है।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने हालांकि कहा कि चुनाव आयोग को विशेष संशोधन (Special Revision) के लिए कुछ “elbow room” यानी सीमित सुविधा दी गई है। लेकिन यह सुविधा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही लागू हो सकती है। जज ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए संतुलित होना चाहिए।
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विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत – हर नागरिक का वोट मूल्यवान है – और चुनाव आयोग की शक्ति के बीच संतुलन की परीक्षा है। यदि आयोग के पास अत्यधिक स्वतंत्रता होगी, तो नागरिकों के अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं। वहीं, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीमित “elbow room” की सुविधा एक संतुलन बनाने का प्रयास है।
इस मामले में कोर्ट का दृष्टिकोण यह दिखाता है कि लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा सर्वोपरि हैं। पिटिशनर्स की दलीलें और न्यायालय की टिप्पणियां भविष्य में मतदाता सूची सुधार प्रक्रिया और चुनाव आयोग की शक्तियों के लिए दिशा-निर्देश तय कर सकती हैं।
इस प्रकार, बिहार SIR केवल तकनीकी प्रक्रिया नहीं बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों और संस्थागत शक्तियों के बीच संवेदनशील संतुलन की लड़ाई बन गई है।
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