भारत को मिट्टी की सेहत सुधारने और कृषि अवशेषों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0 की दिशा में कदम बढ़ाने की जरूरत है।
देश में कृषि अवशेषों का प्रबंधन एक गंभीर चुनौती बन चुका है। प्रतिवर्ष 350 से 990 मिलियन टन से अधिक एग्रो-वेस्ट उत्पन्न होता है, जिसमें अधिकांश अवशेष या तो जलाए जाते हैं या अनुचित तरीके से सड़ने के लिए छोड़ दिए जाते हैं। इसका परिणाम गंभीर वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और मिट्टी में जैविक कार्बन की लगातार कमी के रूप में सामने आता है।
ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0 का उद्देश्य इस संकट का स्थायी समाधान प्रस्तुत करना है। इसमें एग्रो-वेस्ट को मिट्टी के लिए उपयोगी जैविक उत्पादों जैसे कंपोस्ट, वर्मी-कंपोस्ट और बायोचार में बदलने के लिए विकेंद्रीकृत ग्रामीण सहकारी मॉडल अपनाने पर जोर दिया जाएगा। इस दृष्टिकोण में अमूल डेयरी सहकारी मॉडल की सफलता को उदाहरण के रूप में लिया गया है, जिसने डेयरी क्षेत्र में छोटे किसानों के लिए स्थायी और लाभकारी व्यवस्था बनाई।
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इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे सहकारी संगठन बनाए जाएंगे, जो किसानों से कृषि अवशेष संग्रह करेंगे और उन्हें जैविक उर्वरक में परिवर्तित करेंगे। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी, पर्यावरणीय नुकसान कम होगा, और किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत उत्पन्न होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि ब्राउन रिवॉल्यूशन 2.0 अपनाने से भारत न केवल कृषि उत्पादन को टिकाऊ बना सकता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर सकता है। यह मॉडल देश में स्थायी कृषि और जैविक संपन्नता की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा।
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