एक आरटीआई (सूचना के अधिकार) के जवाब से खुलासा हुआ है कि केंद्र सरकार ने फोन और इंटरनेट टैपिंग से जुड़े सुरक्षा प्रावधानों पर उद्योग जगत की कई प्रमुख मांगों को खारिज कर दिया। दूरसंचार विभाग (DoT) को टेलीकॉम कंपनियों की ओर से स्वतंत्र निगरानी व्यवस्था, क्षेत्राधिकार की स्पष्टता और इंटरसेप्शन की लागत के मुआवजे जैसे उपायों की मांग की गई थी, लेकिन इन सुझावों को शामिल नहीं किया गया।
सूत्रों के मुताबिक, उद्योग जगत ने यह भी कहा था कि फोन और इंटरनेट इंटरसेप्शन के लिए एक पारदर्शी एवं स्वतंत्र तंत्र होना चाहिए, ताकि निगरानी का दुरुपयोग न हो। साथ ही, विभिन्न एजेंसियों के अधिकार क्षेत्रों को स्पष्ट करने की मांग की गई थी। कंपनियों का तर्क था कि लागत वहन करने की स्थिति में उन्हें उचित मुआवजा भी दिया जाना चाहिए।
हालांकि, दूरसंचार विभाग ने केवल एक मांग स्वीकार की—सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच सुरक्षित संचार प्रणाली की स्थापना। इसके तहत डेटा और संचार को सुरक्षित रखने के लिए एन्क्रिप्शन आधारित नेटवर्क कनेक्शन की व्यवस्था की जाएगी।
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विशेषज्ञों का मानना है कि उद्योग की अन्य मांगों को खारिज करने से निगरानी प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी बनी रह सकती है। इससे नागरिक अधिकारों और गोपनीयता से जुड़े सवाल और गहरे हो सकते हैं।
इस खुलासे ने फोन व इंटरनेट निगरानी नीतियों को लेकर नए सिरे से बहस छेड़ दी है। आलोचकों का कहना है कि सरकार को सुरक्षा और निजता के बीच संतुलन बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।
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