चेन्नई की सफाई व्यवस्था पिछले कुछ हफ्तों से गहरे संकट में है। नगर निगम ने अपने कचरा प्रबंधन और सफाई सेवाओं को निजी ऑपरेटरों को सौंप दिया है, जिसके कारण सैकड़ों कंजरवेंसी वर्करों की स्थिति बिगड़ गई है। इन कर्मचारियों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हें आय में कमी और स्थायी नौकरी के अवसर खोने का डर सताने लगा है।
कई मजदूरों का कहना है कि जब तक यह काम निगम के अधीन था, तब तक उन्हें अपेक्षाकृत बेहतर वेतन और नौकरी की स्थिरता मिलती थी। लेकिन निजी कंपनियों के आने के बाद उनकी मजदूरी घट गई है और भविष्य भी अनिश्चित हो गया है। इसके चलते मजदूरों और उनके परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ता जा रहा है।
इस विवाद ने सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP) मॉडल की आलोचना को भी जन्म दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सफाई और स्वच्छता जैसी बुनियादी नागरिक सेवाएं पूरी तरह निजी हाथों में सौंपने से मजदूरों के हितों की अनदेखी हो रही है। निगम के कुछ पूर्व अधिकारी भी मानते हैं कि निजी कंपनियां लाभ कमाने पर ज्यादा ध्यान देती हैं, जबकि मजदूरों की सुरक्षा और भलाई पीछे छूट जाती है।
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हालांकि नगर निगम का कहना है कि निजी ऑपरेटरों से काम की दक्षता और सेवा की गुणवत्ता में सुधार आएगा, लेकिन जमीनी हालात मजदूरों के पक्ष में नहीं दिख रहे। विरोध-प्रदर्शन बढ़ने के बावजूद प्रशासन ने अभी तक कोई ठोस समाधान पेश नहीं किया है।
चेन्नई की यह स्थिति न केवल कचरा प्रबंधन संकट को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि जब बुनियादी सेवाएं निजी हाथों में जाती हैं तो सबसे बड़ा नुकसान मजदूरों को झेलना पड़ता है।
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