कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को ‘असमझनीय’ बताया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री संबंधी जानकारी उजागर करने के केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को रद्द कर दिया गया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि प्रधानमंत्री की डिग्री से जुड़ी जानकारी ‘निजी सूचना’ है और इसमें कोई ‘निहित जनहित’ नहीं है।
कांग्रेस का कहना है कि इस तरह के निर्णय पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को कमजोर करते हैं। पार्टी ने सवाल उठाया कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता को सार्वजनिक करने में क्या आपत्ति हो सकती है? कांग्रेस नेताओं के अनुसार, जनता को अपने नेताओं की शैक्षणिक पृष्ठभूमि जानने का संपूर्ण अधिकार है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह निर्णय देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की शैक्षिक डिग्री का खुलासा व्यक्तिगत निजता के दायरे में आता है और इसे सार्वजनिक करने के लिए कोई अनिवार्य जनहित कारण मौजूद नहीं है। इसके आधार पर न्यायालय ने CIC के आदेश को रद्द कर दिया।
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कांग्रेस ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि लोकतंत्र में पारदर्शिता एक बुनियादी मूल्य है और जब सवाल प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यता का हो, तो इसे छिपाने की कोई वजह नहीं होनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह विवाद केवल डिग्री से जुड़ा नहीं, बल्कि सार्वजनिक पदाधिकारियों की जवाबदेही और सूचना के अधिकार (RTI) की सीमाओं पर भी एक व्यापक बहस को जन्म देता है। कांग्रेस ने केंद्र से आग्रह किया है कि वह जनता के सामने पूरी जानकारी रखे ताकि इस मामले पर सभी शंकाओं का समाधान हो सके।
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