दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार (1 दिसंबर 2025) को केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि देशभर में पिछले पाँच वर्षों से कैंटोनमेंट बोर्डों के चुनाव न कराना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कैंटोनमेंट बोर्ड रक्षा मंत्रालय के अधीन आते हैं, और इसलिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह समय पर चुनाव कराए, ताकि इन बोर्डों में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रतिनिधि कार्य कर सकें।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने केंद्र द्वारा लगातार विशेष अधिसूचनाएं जारी करके अधिकारियों के माध्यम से बोर्डों का संचालन करने पर गंभीर आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि “विशेष अधिसूचनाएं केवल विशेष परिस्थितियों—जैसे सैन्य अभियान—के दौरान ही जारी की जानी चाहिए। लेकिन सरकार द्वारा लगातार इनका उपयोग करना सत्ता के दुरुपयोग के रूप में देखा जा सकता है।”
पीठ ने यह भी कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है और इसलिए सभी प्रशासनिक निकायों का संचालन लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के तहत होना चाहिए। चुनाव न होने से न केवल जनता का प्रतिनिधित्व बाधित होता है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही भी प्रभावित होती है।
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कोर्ट ने केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि चुनाव इतने वर्षों से क्यों नहीं कराए गए और इस संबंध में देरी का आधार क्या था। साथ ही, केंद्र को यह भी बताना होगा कि आगामी चुनावों की समय-सीमा क्या होगी और वह जनप्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाएगा।
इस मामले की अगली सुनवाई में केंद्र सरकार से विस्तृत जवाब की अपेक्षा की जाएगी। कोर्ट के इस कठोर रुख से संकेत मिलता है कि वह चुनावी प्रक्रिया को बहाल करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाए रखेगा।
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