सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार (3 नवंबर 2025) को 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की साजिश से जुड़े मामले में कार्यकर्ता उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
कार्यकर्ता शिफा-उर-रहमान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को “चुनिंदा रूप से” आरोपी बनाया गया है, जबकि यूएपीए (UAPA) के तहत कोई अपराध साबित नहीं होता। उन्होंने कहा, “गांधीवादी तरीका यही सिखाता है कि यदि कोई कानून अन्यायपूर्ण है, तो हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम उसका शांतिपूर्ण विरोध करें।”
कार्यकर्ताओं ने दलील दी कि वे पांच साल से अधिक समय से बिना किसी ठोस सबूत के जेल में बंद हैं, जो “ट्रायल से पहले सजा” के समान है। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के 2 सितंबर के आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनकी जमानत याचिका खारिज की गई थी।
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दिल्ली पुलिस ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि यह स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं बल्कि “पूर्व नियोजित साजिश” थी।
कार्यकर्ता मीरन हैदर के वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा कि तीन सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है, जबकि उनके मुवक्किल का रोल उससे भी हल्का है। उन्होंने बताया कि हैदर 1 अप्रैल 2020 से जेल में हैं और अभी भी जांच जारी है।
सलमान खुर्शीद ने आगे कहा कि “दक्षिण एशिया में कई बार अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ विरोध हुआ है, लेकिन हिंसा कभी समाधान नहीं है। गांधीजी ने सिखाया कि विरोध भी अहिंसक होना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई 6 नवंबर 2025 के लिए तय की है।
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