सुप्रीम कोर्ट ने एक दुर्लभ फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करते हुए उस व्यक्ति के खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही को रद्द कर दिया, जिसने नाबालिग लड़की से संबंध बनाए थे और बाद में उसी से विवाह कर लिया। अदालत ने कहा कि यह अपराध “वासना से नहीं, बल्कि प्रेम से उपजा था।”
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि पीड़िता, जो अब आरोपी की पत्नी है, ने स्वयं बताया कि वे एक वर्षीय पुत्र के साथ सुखी पारिवारिक जीवन जी रहे हैं और पीड़िता के पिता ने भी मामले के अंत की मांग की।
पीठ ने कहा, “हम जानते हैं कि अपराध केवल किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं, बल्कि पूरे समाज के विरुद्ध होता है, परंतु न्याय का प्रशासन व्यावहारिक वास्तविकताओं से अलग नहीं हो सकता।” अदालत ने कहा कि न्याय करते समय परिस्थितियों के अनुसार कठोरता और करुणा दोनों का संतुलन बनाए रखना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान ने अदालत को "पूर्ण न्याय" करने की शक्ति दी है ताकि कानून के कठोर अनुप्रयोग से अन्याय न हो। अदालत ने यह भी कहा कि आरोपी और पीड़िता के वैवाहिक और पारिवारिक जीवन को देखते हुए आपराधिक कार्रवाई जारी रखना उनके परिवार और समाज दोनों के लिए हानिकारक होगा।
अदालत ने चेतावनी दी कि आरोपी भविष्य में अपनी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण सम्मानपूर्वक करेगा, अन्यथा परिणाम उसके लिए “अप्रिय” होंगे। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल इस मामले की विशिष्ट परिस्थितियों में दिया गया है और भविष्य में किसी अन्य मामले के लिए मिसाल नहीं बनेगा।
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