केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सोमवार (22 दिसंबर, 2025) को स्पष्ट किया कि अरावली पर्वतमाला में खनन को लेकर कोई भी नया लाइसेंस जारी नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) आने वाले दिनों में एक जिला-वार रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसमें यह तय किया जाएगा कि कौन-सी पहाड़ियां अरावली पर्वतमाला का हिस्सा मानी जा सकती हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया केवल खनन से जुड़े उद्देश्यों के लिए होगी।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं और सोशल मीडिया पर उठे विरोध के बीच मंत्री ने यह बयान दिया। इन आरोपों में कहा जा रहा था कि अरावली पर्वतमाला के बड़े हिस्से को खनन के लिए खोला जा सकता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान होगा। इन आशंकाओं को खारिज करते हुए भूपेंद्र यादव ने दोहराया कि सरकार किसी भी सूरत में नए खनन लाइसेंस नहीं देगी।
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के 20 नवंबर के आदेश के अनुरूप अरावली पर्वतमाला के पूरे क्षेत्र के लिए ‘सतत खनन प्रबंधन योजना’ (मैनेजमेंट प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग – एमपीएसएम) तैयार की जाएगी। इस योजना का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों के संतुलित उपयोग को सुनिश्चित करना है।
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मंत्री ने कहा कि अरावली पर्वतमाला देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और यह पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। इसलिए सरकार किसी भी तरह के अंधाधुंध खनन की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने यह भी कहा कि जिला-वार रिपोर्ट से यह स्पष्ट होगा कि किन क्षेत्रों में पहले से स्वीकृत खनन गतिविधियां पर्यावरणीय मानकों के तहत आती हैं।
सरकार के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय के निर्देशों और पर्यावरणीय कानूनों का पूरी तरह पालन हो। पर्यावरण मंत्रालय ने आश्वासन दिया कि अरावली क्षेत्र की जैव विविधता और प्राकृतिक विरासत की रक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता रहेगी।
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