भारत में विदेशी निवेश को लेकर निराशाजनक संकेत सामने आए हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (Q1) में विदेशी कंपनियों ने लगभग ₹2 लाख करोड़ मूल्य की परियोजनाएँ रोक दीं। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 1,200% अधिक है, जो निवेशकों की चिंताओं और अनिश्चितताओं को दर्शाता है।
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, टैरिफ (आयात शुल्क) से जुड़ी चिंताओं और नीति की अस्थिरता ने इस बड़ी गिरावट को जन्म दिया है। रिकॉर्ड संख्या में प्रोजेक्ट्स रद्द होने से यह साफ झलकता है कि विदेशी निवेशक भारत के व्यापारिक माहौल को लेकर आशंकित हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पहली तिमाही में छोड़े गए प्रोजेक्ट्स का अनुपात नई परियोजनाओं की घोषणाओं के मुकाबले 8.8 तक पहुँच गया है। यह 2010 के बाद से सबसे ऊँचा स्तर है। इसका मतलब है कि हर नई परियोजना की घोषणा के मुकाबले लगभग नौ प्रोजेक्ट्स को रद्द कर दिया गया।
और पढ़ें: बड़ा घरेलू बाज़ार बना भारत की कंपनियों के लिए सुकून क्षेत्र, वैश्विक विस्तार की कमी: पीयूष गोयल
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति भारत की विकास दर और रोजगार सृजन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। जहाँ एक ओर सरकार उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) और विभिन्न सुधारों के ज़रिए विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है, वहीं लगातार बदलते टैरिफ और नीतिगत जोखिम निवेशकों को हतोत्साहित कर रहे हैं।
इस बीच, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यदि सरकार स्पष्ट और स्थिर नीति ढांचा तैयार करे और व्यापारिक माहौल को और अधिक अनुकूल बनाए, तो विदेशी निवेश दोबारा तेज़ी से वापस आ सकता है। फिलहाल, ये आँकड़े भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी संकेत माने जा रहे हैं।
और पढ़ें: भारतीय अर्थव्यवस्था आने वाले तिमाहियों में तेज़ वृद्धि बनाए रखेगी: मुख्य आर्थिक सलाहकार नागेश्वरन