सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद केंद्र सरकार ने उस गर्भवती महिला और उसके आठ वर्षीय बेटे को वापस भारत लाने पर सहमति व्यक्त की है, जिन्हें हाल ही में बांग्लादेश भेज दिया गया था। बुधवार, 3 दिसंबर 2025 को केंद्र ने अदालत को बताया कि यह निर्णय पूरी तरह “मानवीय आधार” पर लिया गया है, क्योंकि महिला की स्थिति और उसके गर्भावस्था को ध्यान में रखते हुए उसे उचित चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता है।
मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दिए गए इस आश्वासन को अपने आदेश में दर्ज किया। सरकार ने अदालत को भरोसा दिलाया कि महिला सोनाली खातून को भारत लाए जाने के बाद उसे मुफ्त चिकित्सा सुविधा, सुरक्षित आवास और उपचार के सभी जरूरी साधन उपलब्ध कराए जाएंगे। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सरकार उसकी चिकित्सा स्थिति पर निरंतर नजर रखे और उसे किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।
पीठ ने यह भी कहा कि आठ वर्षीय बच्चे की दिन-प्रतिदिन देखभाल सुनिश्चित की जाए और यह देखा जाए कि उसके हितों का पूरी तरह ध्यान रखा जाए। अदालत ने टिप्पणी की कि मानवता सर्वोपरि है, और किसी भी प्रशासनिक कार्रवाई में व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य और गरिमा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
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यह मामला तब सामने आया जब सोनाली खातून और उसके बेटे को नागरिकता संबंधित विवादों के कारण भारत-बांग्लादेश सीमा से वापस भेज दिया गया था। NGO और वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि गर्भवती महिला को निर्वासन के कारण गंभीर स्वास्थ्य जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत सुनवाई की और केंद्र ने मानवीय आधार पर पुनर्विचार कर उन्हें वापस लाने का निर्णय लिया।
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