जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि ऐसे बयान देना कि "जम्मू-कश्मीर भारत का अवैध कब्जा है" या "इसे भारत से अलग कर देना चाहिए", गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह के कथन भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सीधा हमला हैं और इन्हें राष्ट्र-विरोधी मंशा के रूप में देखा जाएगा।
यह टिप्पणी कोर्ट ने एक व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए दी, जिस पर देश-विरोधी भाषण देने का आरोप था। आरोपी ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर यह दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर पर भारत का कब्जा "गैरकानूनी" है और इसे "स्वतंत्र" होना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि ऐसे बयान न सिर्फ संविधान की भावना के विरुद्ध हैं, बल्कि इससे शांति व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है। कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि भारत की संप्रभुता के खिलाफ किसी भी प्रकार की सार्वजनिक अभिव्यक्ति कानून के तहत गंभीर अपराध है।
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फैसले में कहा गया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त एक मूल अधिकार है, लेकिन इसकी भी सीमाएं हैं। जब कोई बयान राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डालता है, तो वह अधिकार नहीं, अपराध बन जाता है।
यह फैसला उन सभी मामलों में मिसाल बनेगा, जहां राष्ट्र-विरोधी बयानों की आड़ में कानून का दुरुपयोग किया जाता है।
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