कर्नाटक हाईकोर्ट ने आपराधिक अवमानना के एक मामले में बेंगलुरु स्थित भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Institute of Astrophysics) के एक पूर्व कर्मचारी को चार महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने यह सजा उस व्यक्ति द्वारा हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों और अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ “अपमानजनक, अशोभनीय और निराधार” टिप्पणियां करने के बाद दी।
यह मामला तब सामने आया जब संबंधित व्यक्ति को बेंगलुरु के खगोल भौतिकी संस्थान से सेवा से बर्खास्त किया गया। बर्खास्तगी के बाद उसने स्वयं को ‘व्हिसलब्लोअर’ बताते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायाधीशों, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के सदस्यों, अधिवक्ताओं और अन्य अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए। अदालत ने पाया कि उसके आरोप न केवल निराधार थे, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले भी थे।
न्यायमूर्ति अनु शिवरामन और न्यायमूर्ति विजयकुमार पाटिल की पीठ ने 11 दिसंबर को पारित अपने आदेश में कहा कि आरोपी अपने आचरण के लिए कोई भी ऐसी परिस्थितियां प्रस्तुत नहीं कर सका, जिन्हें शमनकारी (mitigating) माना जा सके। पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आरोपी ने अदालत के समक्ष गंभीर अवमानना की है और उसने इस न्यायालय के अधिवक्ताओं, महाधिवक्ता, सरकारी वकीलों और न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक, कलंकित करने वाले और तथ्यहीन बयान दिए हैं।
और पढ़ें: न्यायिक पक्षपात से अनुशासनहीनता तक: विपक्षी सांसदों ने जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के महाभियोग की मांग क्यों उठाई
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायिक संस्थानों और न्यायाधीशों के खिलाफ निराधार आरोप न केवल न्याय व्यवस्था को कमजोर करते हैं, बल्कि जनता के विश्वास को भी प्रभावित करते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को चार महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई।
और पढ़ें: भारत के सर्वोच्च न्यायालय में श्रीलंका के मुख्य न्यायाधीश प्रीथी पद्मन सुरसेना का औपचारिक स्वागत