कर्नाटक में कथित “वोट चोरी” विवाद में अब एक बड़ा खुलासा हुआ है। सूत्रों के अनुसार, एक डेटा एंट्री टीम को मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए भुगतान किया गया था। बताया जा रहा है कि प्रत्येक हटाए गए मतदाता के लिए 80 रुपये दिए जा रहे थे, और 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले करीब 7,000 मतदाताओं को हटाने के अनुरोध किए गए थे।
सूत्रों ने बताया कि इस काम में कम से कम छह लोग शामिल थे, जो एक डेटा सेंटर से जुड़े हुए थे और वोटरों को हटाने के लिए इंटरनेट कॉल (VoIP) के माध्यम से काम कर रहे थे। पुलिस ने इनके घरों और दफ्तरों पर छापे मारकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त किए हैं, जिन्हें अब फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है।
कर्नाटक के आईटी मंत्री प्रियांक खड़गे ने इन रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “यह वही साबित करता है जो हम शुरू से कह रहे थे – अलंद क्षेत्र में 2023 के चुनाव से पहले 6,000 से ज्यादा वास्तविक मतदाताओं के नाम पैसों के लेनदेन के जरिए मतदाता सूची से हटाए गए।” उन्होंने बताया कि यह पूरा ऑपरेशन कलबुर्गी स्थित एक डेटा सेंटर से चलाया जा रहा था।
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इस बीच, बीते हफ्ते पूर्व भाजपा विधायक सुभाष गुट्टेदार के घर के पास सैकड़ों जले हुए मतदाता रिकॉर्ड भी मिले। गुट्टेदार ने कहा कि यह “सफाई कर्मचारियों द्वारा गलती से जलाए गए बेकार कागज” थे।
यह मामला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के गढ़ अलंद से जुड़ा है। कांग्रेस विधायक बी.आर. पाटिल और प्रियांक खड़गे ने सबसे पहले मतदाता सूची में गड़बड़ी के सबूत दिए थे। पाटिल ने दावा किया कि लगभग 6,994 मतदाता, जिनमें अधिकतर वंचित वर्गों के थे, उनके नाम जानबूझकर हटाए गए।
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