महाराष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत स्कूलों में त्रिभाषा नीति लागू करने के लिए गठित समिति अपनी अंतिम रिपोर्ट 20 दिसंबर को राज्य सरकार को सौंपेगी। यह समिति लंबे समय से विभिन्न स्तरों पर विचार-विमर्श कर रही थी, और शुक्रवार (28 नवंबर 2025) को मुंबई में हुई आठवीं तथा अंतिम जन-सुनवाई के साथ परामर्श प्रक्रिया समाप्त हुई।
इस जन-सुनवाई में छात्रों, शिक्षा विशेषज्ञों, शिक्षकों और राजनीतिक प्रतिनिधियों ने अपनी राय रखी। यहां अलग-अलग मत सामने आए, जिससे कई बार चर्चा के दौरान गरमागरमी भी देखने को मिली। अधिकांश प्रतिभागियों ने यह राय व्यक्त की कि राज्य में मराठी और अंग्रेज़ी को अनिवार्य किया जाना चाहिए, जबकि हिंदी को बाद के चरणों में शामिल किया जाए। कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि तीनों भाषाओं को एक साथ अनिवार्य करने से छात्रों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा, खासकर ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के बच्चों पर।
बहुत से प्रतिभागियों ने कहा कि मराठी राज्य की मातृभाषा होने के कारण इसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए, जबकि अंग्रेज़ी शिक्षा और रोजगार दोनों के लिए आवश्यक है। वहीं, हिंदी को धीरे-धीरे या वैकल्पिक रूप से लागू करने की राय पर भी जोर दिया गया।
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समिति अब तक विभिन्न जिलों में आयोजित परामर्शों से एकत्र सभी सुझावों का विश्लेषण कर रही है। अंतिम रिपोर्ट में भाषा-शिक्षण की व्यवहार्यता, पाठ्यक्रम का बोझ, शिक्षकों की उपलब्धता और लागू किए जाने की चरणबद्ध रणनीति जैसे पहलुओं को शामिल किए जाने की उम्मीद है।
राज्य सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर यह तय करेगी कि महाराष्ट्र के स्कूलों में त्रिभाषा नीति को किस प्रकार और किस समय-सीमा में लागू किया जाए। रिपोर्ट को लेकर छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में उत्सुकता बनी हुई है।
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