भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अमित मालवीय ने हाल ही में सिलहटी भाषी समुदाय के प्रति अपने रुख में नरमी दिखाई है। यह कदम उन्हें असम में सिलहटी बोलने वालों की आलोचना के बाद उठाना पड़ा। मामला तब शुरू हुआ जब उन्होंने दिल्ली पुलिस के एक नोट का बचाव किया था, जिसमें सिलहटी भाषा को ‘बांग्लादेशी भाषा’ के रूप में संदर्भित किया गया था।
दिल्ली पुलिस के इस नोट ने सोशल मीडिया और स्थानीय समुदायों में नाराज़गी पैदा कर दी थी। सिलहटी भाषी लोग, जो मुख्य रूप से असम और त्रिपुरा में रहते हैं, लंबे समय से इस बात पर जोर देते आए हैं कि सिलहटी एक स्वतंत्र भाषा और सांस्कृतिक पहचान रखती है, और इसे बांग्लादेशी या विदेशी भाषा के रूप में चित्रित करना गलत और अपमानजनक है।
मालवीय के शुरुआती बयान को सिलहटी भाषी लोगों ने अपनी पहचान पर हमला माना। असम के कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने भाजपा नेता से माफी की मांग की और सिलहटी भाषा को भारतीय भाषाओं में उसका उचित स्थान देने पर जोर दिया।
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विवाद बढ़ने के बाद, मालवीय ने अपने बयान में संशोधन करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य किसी समुदाय की भावनाओं को आहत करना नहीं था। उन्होंने स्पष्ट किया कि सिलहटी भाषी भारतीय नागरिकों का सम्मान किया जाना चाहिए और उनकी भाषा व संस्कृति देश की विविधता का अभिन्न हिस्सा है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद न केवल भाषाई पहचान के मुद्दे को उजागर करता है, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए सांस्कृतिक संवेदनशीलता बनाए रखने की चुनौती को भी रेखांकित करता है।
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