भारत सरकार ने बुधवार (30 जुलाई, 2025) को संसद में जानकारी दी कि 2018 से 2022 के बीच पूरे देश में केवल दो मामले ही अदालतों द्वारा यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत खारिज किए गए।
राज्यसभा में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने यह जानकारी साझा की। मंत्री ने नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट "क्राइम इन इंडिया" का हवाला देते हुए बताया कि इस अवधि में कुल 6,503 व्यक्तियों के खिलाफ यूएपीए के तहत आरोपपत्र दायर किए गए, जबकि 252 लोगों को इन मामलों में दोषी ठहराया गया।
डेटा के अनुसार, ये दोनों खारिज मामले 2022 में केरल राज्य में दर्ज हुए थे। इसका मतलब है कि इस सख्त आतंकवाद-निरोधी कानून के तहत दर्ज मामलों में अदालतों द्वारा खारिज किए जाने की दर बेहद कम है।
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यूएपीए कानून का उपयोग देश में आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से निपटने के लिए किया जाता है। हालांकि, इस कानून का इस्तेमाल लेकर कई बार मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी दलों ने चिंता जताई है कि इसका दुरुपयोग भी हो सकता है।
मंत्री ने यह भी बताया कि 2018 से 2022 के बीच दर्ज यूएपीए मामलों में जांच और मुकदमे की प्रक्रिया लगातार जारी है और कई मामलों में अदालतों ने सजा सुनाई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मामलों का खारिज न होना इस बात का संकेत है कि यूएपीए मामलों में जांच और अभियोजन मजबूत रहा है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त निगरानी तंत्र मौजूद हो।
सरकार ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए यूएपीए कानून का सख्ती से पालन किया जाएगा।
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