सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के माथेरान में हाथ से खींची जाने वाली रिक्शाओं को “अमानवीय” बताते हुए उन पर रोक लगाने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह का परिवहन व्यवस्था संविधान की सामाजिक न्याय की भावना के खिलाफ है।
शीर्ष अदालत ने 45 साल पुराने फैसले ‘आज़ाद रिक्शा पुलर्स यूनियन बनाम पंजाब राज्य’ मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि साइकिल रिक्शा जैसी व्यवस्थाएं सामाजिक न्याय की प्रस्तावना से मेल नहीं खातीं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी प्रथाएं श्रमिकों के सम्मान और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
माथेरान, जो कि महाराष्ट्र का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है, वहां लंबे समय से हाथ से खींची जाने वाली रिक्शाओं का इस्तेमाल होता रहा है। अदालत ने कहा कि यह प्रथा आधुनिक समाज में अस्वीकार्य है और इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए।
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह काम बेहद कठिन और अपमानजनक है तथा इसे करने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह वैकल्पिक परिवहन साधन मुहैया कराए जिससे न केवल पर्यावरण सुरक्षित रहे बल्कि मजदूरों को भी सम्मानजनक रोजगार मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस आदेश का पालन जल्द से जल्द किया जाए और हाथ से खींची जाने वाली रिक्शाओं पर पूरी तरह से रोक लगे।
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