कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने अपने 79वें जन्मदिन पर देश को एक संक्षिप्त, लेकिन प्रभावी संदेश दिया—“वंदे मातरम।” यह बयान ऐसे समय पर आया जब पिछले दो दिनों से संसद में राष्ट्रीय गीत को लेकर तीखी राजनीतिक बहस जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, प्रियंका गांधी वाड्रा और अन्य नेताओं के बयान इस विवाद को और गर्म करते रहे।
सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर ‘वंदे मातरम’ का विरोध किया क्योंकि इससे “मुस्लिम समुदाय को जलन हो सकती थी।” इस बयान ने विवाद को और तेज कर दिया।
प्रियंका गांधी ने तुरंत जवाब देते हुए कहा कि भाजपा विपक्ष को ‘वंदे मातरम’ की बहस में उलझाकर बंगाल चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। उन्होंने प्रधानमंत्री पर नेहरू के पत्रों को “चुनिंदा तरीके से” प्रस्तुत करने का आरोप लगाया।
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इसके बाद भाजपा की ओर से गृह मंत्री अमित शाह ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “‘वंदे मातरम’ सिर्फ बंगाल तक सीमित नहीं है, यह पूरे देश का गीत है।” भाजपा ने कांग्रेस पर 1937 के अधिवेशन में “सांप्रदायिक तुष्टिकरण” के लिए गीत को छोटा करने का आरोप लगाया।
कांग्रेस ने जवाब में कहा कि भाजपा और आरएसएस स्वयं इस गीत को कई मौकों पर नहीं गाते। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह विडंबना है कि जो लोग राष्ट्रवाद की रक्षा का दावा करते हैं, वे ही ‘वंदे मातरम’ से दूरी बनाए रखते हैं।
विवाद की जड़ में गीत के छह श्लोक हैं, जिनमें बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का उल्लेख किया है। 1937 में नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय कार्यक्रमों में केवल पहले दो श्लोक ही गाए जाएं, क्योंकि अन्य श्लोक मुस्लिम समुदाय के कुछ हिस्सों को “बहिष्करणकारी” लगते थे।
भाजपा का कहना है कि इन पंक्तियों को हटाने से विभाजन के बीज बोए गए, जबकि कांग्रेस का तर्क है कि यह समावेशिता के लिए किया गया फैसला था।
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