सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (3 नवंबर 2025) को देशभर में पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई को टाल दिया। कोर्ट ने पड़ोसी देश नेपाल में हाल ही में हुए ‘जेन जेड’ प्रदर्शनों का उल्लेख करते हुए कहा कि वह इस समय ऐसे प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की, “देखिए, नेपाल में प्रतिबंध के बाद क्या हुआ।” नेपाल में सोशल मीडिया बैन के बाद युवाओं द्वारा हिंसक प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में अदालत ने यह टिप्पणी की। हालांकि, अदालत ने कहा कि यह मामला चार सप्ताह बाद दोबारा सूचीबद्ध किया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया था कि वह एक राष्ट्रीय नीति बनाए और एक कार्ययोजना तैयार करे ताकि खासकर नाबालिगों के बीच पोर्न सामग्री की पहुंच पर रोक लगाई जा सके।
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याचिका में कहा गया था, “डिजिटलीकरण के बाद हर कोई एक क्लिक में हर तरह की सामग्री तक पहुंच सकता है। सरकार ने भी स्वीकार किया है कि अरबों पोर्न वेबसाइटें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।”
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चे ऑनलाइन शिक्षा के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग कर रहे थे, लेकिन उन पर सामग्री नियंत्रण के पर्याप्त तंत्र नहीं थे।
उन्होंने कहा कि यद्यपि निगरानी के लिए अभिभावकों के पास कुछ सॉफ्टवेयर हैं, परंतु इस समस्या से निपटने के लिए कोई प्रभावी कानून नहीं है। 13 से 18 वर्ष के युवाओं पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
याचिका में यह भी कहा गया कि भारत में 20 करोड़ से अधिक पोर्न वीडियो या क्लिप, जिनमें बाल यौन शोषण से संबंधित सामग्री भी शामिल है, बिक्री के लिए उपलब्ध हैं।
सरकार के पास आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69ए के तहत ऐसी वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति है।
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