सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट को अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने एक निर्माण कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इस आदेश में एक भवन के अनधिकृत हिस्सों को ध्वस्त करने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण न केवल शहरी योजना और कानून के विरुद्ध है, बल्कि यह आम जनता के हितों को भी प्रभावित करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून के शासन को बनाए रखने के लिए ऐसे निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आवश्यक है, चाहे वह किसी भी प्रभावशाली व्यक्ति या कंपनी द्वारा किया गया हो।
निर्माण कंपनी ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि भवन का ध्वस्तीकरण भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाएगा और कई लोगों को प्रभावित करेगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि व्यक्तिगत हितों से ऊपर जनहित है और किसी भी अवैध निर्माण को किसी भी सूरत में मान्यता नहीं दी जा सकती।
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अदालत ने यह भी कहा कि राज्य प्रशासन और शहरी निकायों को चाहिए कि वे ऐसे निर्माणों की पहचान समय रहते करें और उन पर रोक लगाएं। देर से कार्रवाई करने पर नुकसान बढ़ता है और आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरा होता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार और नगर निगम अवैध निर्माण के खिलाफ और अधिक सख्ती से कदम उठाएंगे।
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