सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (9 दिसंबर 2025) को निर्वाचन आयोग द्वारा किए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू की। याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा है कि चुनाव आयोग एक “स्वेच्छाचारी संस्था” की तरह काम कर रहा है, जिसने मतदाता सूची की शुद्धता पर मात्र “संदेह” को पूरे देश में बड़े सर्वेक्षण में बदल दिया है। उनका आरोप है कि इस तरह की कवायद बड़े पैमाने पर मताधिकार छिनने और कई लोगों के राज्यहीन होने का खतरा पैदा कर सकती है।
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता पक्ष ने तर्क दिया था कि चुनाव आयोग अपनी सीमाओं से परे जाकर नागरिकता की जांच कर रहा है, जबकि यह संविधान में स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं है।
दूसरी ओर, निर्वाचन आयोग (EC) ने दृढ़ता से कहा है कि उसे मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए नागरिकता “सत्यापित” करने का पूर्ण अधिकार है। आयोग का कहना है कि उसे यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 324 से मिलता है, जो उसे चुनावों के संचालन, पर्यवेक्षण और नियंत्रण के विशेषाधिकार देता है। EC का यह भी कहना है कि संसद का चुनाव संबंधी कानून बनाने का अधिकार (अनुच्छेद 327) चुनाव आयोग की पूर्ण शक्तियों के अनुरूप होना चाहिए।
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इसी बीच, तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि SIR प्रक्रिया के तहत प्रपत्र जमा करने की अवधि बढ़ाई जाए, क्योंकि वर्तमान समयसीमा विभिन्न प्रशासनिक बाधाओं के कारण पर्याप्त नहीं है।
इस मामले की ज़मीनी रिपोर्टिंग सुप्रीम कोर्ट से कृष्णदास राजगोपाल कर रहे हैं।
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