सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें 2025 के नवीन आदेश की एक धारा को चुनौती दी गई है। यह धारा अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से उत्पीड़न झेलकर भारत आए उन धार्मिक अल्पसंख्यक प्रवासियों को असम में रहने की अनुमति देती है, जो 31 दिसंबर 2024 से पहले बिना पासपोर्ट या वैध दस्तावेजों के भारत में प्रवेश कर गए थे।
मुख्य न्यायाधीश भारत के सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किया। यह याचिका असम गण परिषद (AGP) की ओर से दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंती भूषण और अधिवक्ता राहुल प्रताप ने दलीलें पेश कीं।
AGP ने 2025 के Immigration and Foreigners (Exemption) Order की धारा 3(l)(e) को असम समझौते का स्पष्ट उल्लंघन बताया है। उनका कहना है कि असम समझौते के तहत 24 मार्च 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले सभी अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें निष्कासित किया जाना चाहिए। वहीं 2025 के आदेश में 2024 तक बिना दस्तावेज आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को रहने की अनुमति दी गई है, जो समझौते की मूल भावना और जनसंख्या संतुलन की चिंता के खिलाफ है।
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याचिका में दावा किया गया है कि यह प्रावधान असम की सामाजिक, सांस्कृतिक और जनसांख्यिक संरचना पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए इसकी संवैधानिक वैधता की जांच आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए केंद्र से विस्तृत जवाब मांगा है। आगामी सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि यह धारा असम समझौते और भारतीय कानूनों के अनुरूप है या इसे संशोधित करने की आवश्यकता है।
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