गिनी इंडेक्स ने हाल ही में भारत को 25.5 का स्कोर देते हुए दुनिया के सबसे समान समाजों में से एक बताया है। यह स्कोर भारत को "मध्यम रूप से कम असमानता" वाले देशों की श्रेणी में रखता है। पहली नज़र में यह भारत के लिए गर्व का विषय लग सकता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।
भारत में असमानताएं न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य और लैंगिक स्तर पर गहराई तक मौजूद हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह असमानता रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है। सवाल उठता है कि जब वास्तविकता इतनी अलग है तो गिनी इंडेक्स भारत को इतना समान समाज कैसे मान सकता है?
विशेषज्ञों का मानना है कि गिनी इंडेक्स की पद्धति में कई खामियां हैं, जिसके कारण यह आंकड़े असमानता की पूरी सच्चाई नहीं दिखा पाते। उदाहरण के लिए, यह सूचकांक अक्सर आय और संपत्ति में असमानता को ही मापता है, जबकि सामाजिक बहिष्कार, लैंगिक भेदभाव और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच जैसी समस्याएं इसमें शामिल नहीं होतीं।
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इसके अलावा, तकनीकी विकास के साथ नई असमानताएं भी उभर रही हैं। डिजिटल डिवाइड (तकनीकी पहुंच में असमानता), बैंकिंग सेवाओं तक असमान पहुंच, और आधुनिक जीवनशैली से जुड़े अंतर, असमानता को और गहरा कर रहे हैं।
भारत को वास्तव में समान समाज बनाने के लिए केवल आर्थिक नीतियों में बदलाव ही नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीकी पहुंच और सामाजिक समावेशन में बड़े पैमाने पर सुधार की आवश्यकता है।
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