राजस्थान के दक्षिणी हिस्सों और आस-पास के क्षेत्रों में आदिवासी नेताओं ने एक बार फिर भील प्रदेश की मांग को तेज कर दिया है। यह मांग मुख्य रूप से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) द्वारा उठाई जा रही है। पार्टी के संस्थापक और बांसवाड़ा से लोकसभा सांसद राजकुमार रौत इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार वास्तव में आदिवासियों के हितों की पक्षधर है, तो भील प्रदेश की यह वर्षों पुरानी मांग अब पूरी की जानी चाहिए।
राजकुमार रौत ने सोशल मीडिया पर भील प्रदेश का एक प्रस्तावित नक्शा साझा किया है, जिसमें राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुल 49 ज़िलों को शामिल किया गया है। उन्होंने कहा, "भील प्रदेश की मांग आज की नहीं, स्वतंत्रता से पहले की है। यहां की भाषा, संस्कृति, बोली और रीति-रिवाज़ अन्य क्षेत्रों से पूरी तरह अलग हैं।"
भील प्रदेश की मांग के पीछे तर्क है कि यह क्षेत्र सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से अन्य हिस्सों से भिन्न है, और एक अलग राज्य का गठन आदिवासी पहचान और अस्तित्व को सुरक्षित रखेगा।
हालांकि, भाजपा नेताओं ने इस मांग की आलोचना करते हुए इसे 'विभाजनकारी' और 'राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित' कदम बताया है। उनका कहना है कि ऐसे प्रस्ताव राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
यह मुद्दा एक बार फिर राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में tribal पहचान, क्षेत्रीय असंतुलन और स्वायत्तता को लेकर बहस को हवा दे रहा है। भविष्य में यह मांग और आंदोलन और तेज़ हो सकता है।