कभी भूख मिटाने के लिए गिरे हुए फल बटोरने को मजबूर रहीं आंध्र प्रदेश की टीसी दीपिका आज नेत्रहीनों के लिए महिला टी20 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम की कप्तान हैं। उनकी यह यात्रा सिर्फ खेल की उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव और महिला सशक्तिकरण की एक मजबूत मिसाल भी है। दीपिका जिस गांव से आती हैं, वह आज भी महिलाओं के खिलाफ मौजूद “पिछड़ी और दमनकारी परंपराओं” से जूझ रहा है।
नवंबर में नेत्रहीनों का महिला टी20 विश्व कप जीतने के बाद भारतीय टीम को प्रधानमंत्री आवास, राष्ट्रपति भवन और मुंबई में बीसीसीआई मुख्यालय में सम्मानित किया गया। देश की कई जानी-मानी हस्तियों और वीआईपी लोगों ने टीम से मुलाकात की। इन सभी अनुभवों के बीच कप्तान टीसी दीपिका के लिए एक खास मुलाकात ऐसी रही, जिसने उनके जीवन में “वास्तविक अंतर” पैदा किया।
दीपिका बताती हैं कि बचपन में उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। कई बार उन्हें और उनके परिवार को भूख से लड़ने के लिए खेतों और रास्तों पर गिरे फल उठाने पड़ते थे। इसके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। दृष्टिबाधित होने के बावजूद खेल को उन्होंने अपनी ताकत बनाया और क्रिकेट के जरिए खुद को साबित किया।
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विश्व कप जीतने के बाद दीपिका चाहती हैं कि उनकी सफलता सिर्फ ट्रॉफी तक सीमित न रहे, बल्कि उनके गांव और आसपास के इलाकों में बदलाव की शुरुआत बने। वह चाहती हैं कि लड़कियों को शिक्षा, खेल और अपने सपनों को पूरा करने के समान अवसर मिलें।
दीपिका का मानना है कि उनकी कहानी यह दिखाती है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर अवसर और समर्थन मिले तो कोई भी आगे बढ़ सकता है। उनकी उम्मीद है कि उनकी सफलता आंध्र प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में दृष्टिबाधित खिलाड़ियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बनेगी।
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