मान लीजिए आप मेलबर्न की फ्लाइट की कीमत ऑनलाइन देख रहे हैं। अभी टिकट 300 अमेरिकी डॉलर का है। दो घंटे बाद यह 320 डॉलर हो जाता है, और कुछ घंटों बाद घटकर 280 डॉलर। यही है एल्गोरिदमिक प्राइसिंग की दुनिया — जहाँ तकनीक यह समझने की कोशिश करती है कि आप कितना भुगतान करने को तैयार हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) अब चुपचाप इस प्रक्रिया को बदल रही है कि कंपनियाँ अपनी कीमतें कैसे तय करती हैं। पहले जहां कीमतें केवल मांग और आपूर्ति पर निर्भर होती थीं (जिसे डायनेमिक प्राइसिंग कहा जाता है), अब कंपनियाँ ग्राहकों की ब्राउज़िंग हिस्ट्री, लोकेशन, खरीदारी व्यवहार और यहां तक कि इस्तेमाल किए गए डिवाइस के आधार पर हर व्यक्ति के लिए अलग कीमत तय कर रही हैं — इसे पर्सनलाइज्ड प्राइसिंग कहा जाता है।
यह बदलाव केवल तकनीकी नहीं है, बल्कि नैतिक और नीतिगत सवाल भी उठाता है। क्या यह प्रणाली उपभोक्ताओं के साथ न्याय कर रही है? क्या लोगों को यह बताया जा रहा है कि उन्हें जो कीमत दिख रही है, वह किसी और से अलग है? पारदर्शिता की कमी और डेटा दुरुपयोग की संभावना इस पूरे मॉडल पर सवाल खड़े करती है।
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अगर सही तरीके से नियमन नहीं हुआ, तो यह “स्मार्ट प्राइसिंग” उपभोक्ताओं के लिए अनुचित सौदे और भरोसे के संकट का कारण बन सकती है।
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