चीन ने वैश्विक तकनीकी प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए एक नया वीज़ा कार्यक्रम — K-वीजा — शुरू किया है। यह पहल अमेरिका के H-1B वीज़ा की तर्ज पर बनाई गई है, ताकि चीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल कर सके।
भारतीय आईटी पेशेवर वैश्नवी श्रीनिवासगोपालन जैसी कुशल कर्मियों के लिए यह वीज़ा नए अवसर खोल सकता है। K-वीजा के तहत आवेदक को नौकरी का ऑफर पहले से होना जरूरी नहीं है, जो इसे पहले से मौजूद R-वीजा से अधिक लचीला बनाता है।
यह कदम ऐसे समय में आया है जब अमेरिका में विदेशी पेशेवरों के लिए वीज़ा नियम कड़े किए जा रहे हैं और शुल्क बढ़ाए जा रहे हैं। इस कारण कई छात्र और पेशेवर वैकल्पिक देशों की तलाश कर रहे हैं।
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विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अमेरिकी सख्त नीतियों का लाभ उठाना चाहता है और खुद को वैश्विक तकनीकी प्रतिभाओं के लिए आकर्षक गंतव्य के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। चीन कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), सेमीकंडक्टर और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश कर रहा है।
हालांकि, स्थानीय युवाओं के बीच प्रतिस्पर्धा को लेकर चिंता बनी हुई है। कुछ छात्रों का कहना है कि विदेशी पेशेवरों के आने से स्थानीय रोजगार पर दबाव बढ़ सकता है।
विश्लेषकों का कहना है कि भाषा की बाधा, इंटरनेट सेंसरशिप और राजनीतिक कारक विदेशी पेशेवरों के लिए चीन में काम करना चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं।
फिर भी, चीन का यह नया कदम स्पष्ट संकेत देता है कि वह वैश्विक तकनीकी दौड़ में अमेरिका को टक्कर देने के लिए तैयार है।
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