तिरुवनंतपुरम स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़ (CDS) की एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में मोबाइल फोन असेंबली के दौरान वास्तविक देशीय मूल्य संवर्धन मात्र 23% है। यह आकलन पहले से प्रचलित अनुमानों को चुनौती देता है, जिनमें दावा किया गया था कि यह योगदान कहीं अधिक है।
रिपोर्ट के अनुसार, 'मेक इन इंडिया' अभियान के तहत मोबाइल फोन निर्माण में भले ही तेज़ी आई हो, लेकिन इसमें प्रयुक्त अधिकांश उच्च-मूल्य वाले घटक जैसे चिपसेट, डिस्प्ले, कैमरा मॉड्यूल आदि अभी भी विदेशों से आयात किए जा रहे हैं। देश में जो मूल्य संवर्धन हो रहा है, वह मुख्य रूप से असेंबली, पैकेजिंग और कुछ स्थानीयकृत घटकों तक सीमित है।
CDS द्वारा किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि भले ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन चुका है, लेकिन इसमें असली तकनीकी और आर्थिक आत्मनिर्भरता अभी दूर की बात है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मूल्य श्रृंखला में अधिक योगदान सुनिश्चित करने के लिए देश को उच्च तकनीक विनिर्माण, आरएंडडी और घटक निर्माण में निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है।
यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं के लिए एक चेतावनी के रूप में देखी जा रही है, जो भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाने के प्रयासों में जुटे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालीन सफलता के लिए केवल असेंबली नहीं, बल्कि गहराई से स्थानीयकरण आवश्यक है।