सुप्रीम कोर्ट में धार्मिक परिवर्तन को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। याचिकाकर्ता-एडवोकेट ने अदालत से मांग की थी कि ‘धोखाधड़ीपूर्ण धार्मिक परिवर्तन’ पर प्रतिबंध लगाया जाए। इस पर सीजेआई ने सवाल उठाया कि आखिर यह कौन तय करेगा कि कोई धार्मिक परिवर्तन वास्तव में धोखाधड़ीपूर्ण है या नहीं।
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट का काम नए कानून बनाना नहीं है, बल्कि संविधान और मौजूदा कानूनों के आधार पर फैसले करना है। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है और यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपना धर्म बदलता है, तो यह उसका निजी अधिकार है।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि देश में बड़े पैमाने पर “जबरन या छल से” धर्मांतरण हो रहे हैं, जिससे सामाजिक संतुलन प्रभावित होता है। उन्होंने अदालत से ऐसे परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाने की अपील की। इस पर न्यायालय ने कहा कि यदि ऐसे मामले वास्तव में हैं, तो इसके लिए मौजूदा कानूनों के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
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सीजेआई ने कहा कि अदालत ऐसे मुद्दों पर सामान्यीकृत या काल्पनिक आदेश पारित नहीं कर सकती। उन्होंने जोड़ा कि संसद और राज्य विधानसभाएं इस विषय पर कानून बनाने के लिए सक्षम हैं, लेकिन अदालत को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों की संवैधानिक गारंटी को पुनः पुष्ट करती है। साथ ही यह सरकार और संसद की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करती है।
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