भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। कई प्रतिष्ठित ब्रिटिश विश्वविद्यालय देश के प्रमुख शहरों में अपने कैंपस स्थापित कर रहे हैं। यह पहल नियामकीय सुधारों और ‘विजन 2035’ रोडमैप के तहत मजबूत हो रहे भारत-यूके संबंधों के कारण संभव हो पाई है। इसका उद्देश्य छात्रों को देश के भीतर ही वैश्विक स्तर की शिक्षा उपलब्ध कराना है, जिससे विदेश जाकर पढ़ने की आवश्यकता कम हो सके।
ब्रिटिश काउंसिल के अनुसार, ये अंतरराष्ट्रीय कैंपस भारत की उच्च शिक्षा को कई तरह से नया आकार दे सकते हैं। सबसे बड़ा लाभ यह है कि छात्र बिना देश छोड़े यूके की डिग्री हासिल कर सकेंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नए नियमों के तहत केवल शीर्ष वैश्विक रैंक वाले विश्वविद्यालयों को ही भारत में शाखा कैंपस खोलने की अनुमति है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप समानता सुनिश्चित होगी।
दूसरा बड़ा बदलाव वैश्विक स्तर पर मान्य डिग्रियों और करियर में गतिशीलता को लेकर है। विदेश में पढ़ाई के लिए वीज़ा, आर्थिक बोझ और स्थानांतरण जैसी चुनौतियां अक्सर छात्रों को रोकती हैं। भारत में यूके कैंपस खुलने से छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त डिग्री मिलेगी, जिससे रोजगार के अवसर और करियर की संभावनाएं बढ़ेंगी।
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इन कैंपसों में भविष्य की जरूरतों के अनुरूप पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाने की उम्मीद है। कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस, बायोमेडिकल साइंसेज, बिज़नेस मैनेजमेंट, फाइनेंस, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र और नवाचार आधारित कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान रहेगा।
इसके अलावा, भारत के अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र के रूप में उभरने से दुनिया भर के छात्र इन कैंपसों की ओर आकर्षित होंगे, जिससे विविध और वैश्विक छात्र समुदाय तैयार होगा। साथ ही, यूके विश्वविद्यालय भारत में अपने कैंपसों के जरिए अधिक छात्रवृत्तियां, मेरिट आधारित सहायता और वित्तीय सहयोग देने की योजना बना रहे हैं, जिससे वैश्विक शिक्षा अधिक सुलभ और किफायती बन सके।
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