भारतीय रुपये में सोमवार को बड़ी गिरावट देखने को मिली। विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 52 पैसे कमजोर होकर 87.70 प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद हुआ। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह गिरावट वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती और विदेशी निवेशकों की बिकवाली के चलते आई है।
रुपये की इस गिरावट का असर आयातकों और विदेशी कर्ज वाली कंपनियों पर पड़ सकता है क्योंकि डॉलर के मुकाबले भुगतान महंगा हो जाएगा। वहीं, निर्यातकों को इससे कुछ हद तक फायदा मिल सकता है।
इसी बीच, अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई। फ्यूचर्स ट्रेड में ब्रेंट क्रूड 1.06% गिरकर 68.93 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। यह गिरावट मुख्य रूप से OPEC+ के सितंबर 2025 से कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोतरी के फैसले के कारण हुई है।
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विश्लेषकों का कहना है कि उत्पादन बढ़ने से आपूर्ति में सुधार होगा, जिससे तेल की कीमतों पर दबाव बनेगा। इसका असर वैश्विक ऊर्जा बाजार और भारत की आयात लागत पर भी पड़ सकता है। हालांकि, तेल की कीमतों में कमी से भारत जैसे बड़े तेल आयातक देशों को थोड़ी राहत मिल सकती है।
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की कमजोरी अस्थायी हो सकती है और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जरूरत पड़ने पर बाजार में हस्तक्षेप कर स्थिरता बनाए रखने की कोशिश कर सकता है। आने वाले दिनों में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियां और वैश्विक आर्थिक संकेतक रुपये की चाल को प्रभावित कर सकते हैं।
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