विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन– SIR) के दौरान मटुआ समुदाय के मतदाताओं के नाम हटाए जाने को लेकर भाजपा सांसद और मटुआ नेता शंतनु ठाकुर की टिप्पणी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उनकी टिप्पणी के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच तीखी राजनीतिक बयानबाज़ी शुरू हो गई, जो उत्तर 24 परगना जिले के ठाकुरनगर, मटुआ समुदाय के गढ़, में दोनों पक्षों के समर्थकों के बीच झड़पों में भी बदल गई। यह घटनाक्रम बुधवार (24 दिसंबर 2025) को सामने आया।
शंतनु ठाकुर ने सोमवार (22 दिसंबर) को नदिया जिले के हांसखाली-गारापोटा में आयोजित एक भाजपा कार्यक्रम के दौरान कहा, “अगर एसआईआर प्रक्रिया में 50 लाख रोहिंग्या, बांग्लादेशी मुसलमान और पाकिस्तानी मुसलमानों के नाम हटते हैं और हमारे अपने समुदाय के एक लाख लोगों को कुछ समय के लिए मतदान से वंचित होना पड़ता है, तो हमें यह देखना चाहिए कि हमारा फायदा कहां ज्यादा है।” उनकी इस टिप्पणी को मटुआ समुदाय के एक वर्ग ने अपमानजनक और असंवेदनशील बताया।
टीएमसी ने आरोप लगाया कि भाजपा मटुआ समुदाय के हितों की बलि देकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही है। पार्टी नेताओं ने कहा कि जिन लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं, वे वर्षों से मतदान करते आ रहे भारतीय नागरिक हैं। वहीं, भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि एसआईआर का उद्देश्य अवैध रूप से शामिल नामों को हटाना है और इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत होगी।
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एसआईआर की घोषणा के बाद भाजपा ने मटुआ समुदाय से नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने की अपील की थी और आश्वासन दिया था कि पात्र लोगों के नाम दोबारा मतदाता सूची में शामिल किए जाएंगे। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि यह आश्वासन केवल राजनीतिक है और जमीनी स्तर पर मटुआ मतदाताओं में असुरक्षा और असंतोष बढ़ रहा है।
इस मुद्दे ने न केवल राज्य की राजनीति को गरमा दिया है, बल्कि आने वाले चुनावों से पहले मटुआ समुदाय के रुख को लेकर भी नई बहस छेड़ दी है।
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