भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 52 पैसे की बड़ी गिरावट के साथ 87.43 के स्तर पर बंद हुआ। विदेशी मुद्रा कारोबारियों के अनुसार, व्यापार समझौते में अनिश्चितता, महीने के अंत में बढ़ी डॉलर की मांग और विदेशी फंड के निरंतर बहिर्प्रवाह के कारण रुपया कमजोर हुआ।
कारोबार के दौरान रुपया 87.15 के स्तर पर खुला लेकिन वैश्विक बाजारों में डॉलर की मजबूती और आयातकों द्वारा डॉलर की बढ़ती मांग के चलते यह धीरे-धीरे गिरकर 87.43 पर बंद हुआ। यह पिछले सत्र के मुकाबले 52 पैसे की गिरावट दर्शाता है।
फॉरेक्स ट्रेडर्स का कहना है कि विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पूंजी की निकासी ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया। इसके अलावा, हाल ही में जारी हुए आर्थिक आंकड़ों ने यह संकेत दिया है कि वैश्विक व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, जिससे बाजार में निवेशकों का भरोसा कमजोर हुआ है।
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डॉलर इंडेक्स, जो अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती को मापता है, 0.3% बढ़ा, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर नकारात्मक असर पड़ा। अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव भी रुपये की कमजोरी में एक कारक रहा।
हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है ताकि रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोका जा सके। निकट भविष्य में रुपये की दिशा वैश्विक आर्थिक संकेतकों और विदेशी निवेश प्रवाह पर निर्भर करेगी।
बाजार विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर विदेशी फंड का बहिर्प्रवाह जारी रहता है और व्यापार समझौते को लेकर स्पष्टता नहीं आती है, तो रुपया 88 के स्तर तक भी कमजोर हो सकता है।
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