फ़्रांस ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में फ़िलिस्तीन को औपचारिक रूप से राज्य का दर्जा दिया। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने संबोधन में कहा कि अब समय आ गया है कि गाज़ा में जारी युद्ध और बमबारी को समाप्त किया जाए, निर्दोष लोगों के नरसंहार और विस्थापन पर रोक लगाई जाए और बंधक बनाए गए सभी 48 लोगों को जल्द से जल्द रिहा किया जाए।
मैक्रों ने स्पष्ट किया कि फ़्रांस का यह निर्णय पश्चिम एशिया में स्थायी शांति की दिशा में एक बड़ा कदम है। उनका कहना था कि फ़िलिस्तीनी जनता को दशकों से न्याय और आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं मिल पाया है। राज्य की मान्यता से दोनों पक्षों के बीच संवाद और विश्वास बहाली की संभावना बढ़ेगी।
इस कदम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति प्रयासों को फिर से जीवित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि फ़्रांस का यह रुख अन्य यूरोपीय देशों को भी प्रभावित कर सकता है और वे भी फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
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फ़्रांस ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वे हिंसा की बजाय कूटनीति और वार्ता को प्राथमिकता दें। मैक्रों ने ज़ोर देकर कहा कि गाज़ा में मानवीय सहायता को तत्काल और निर्बाध रूप से पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि आम लोगों को राहत मिल सके।
हालांकि, इज़राइल ने इस निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे अव्यावहारिक कदम बताया है। इज़राइल का कहना है कि इससे शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचेगा।
फिर भी, फ़्रांस का यह कदम लंबे समय से ठहरे हुए इज़राइल-फ़िलिस्तीन विवाद में नए आयाम जोड़ सकता है और भविष्य की वार्ताओं के लिए आधार तैयार कर सकता है।
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