भारतीय रुपया सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 25 पैसे गिरकर 88.53 रुपये प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया। यह गिरावट विदेशी मुद्रा बाजार में निवेशकों की बिकवाली और डॉलर की मजबूती के बीच आई है। रुपया लगातार दबाव में है और हाल के महीनों में डॉलर के मुकाबले इसकी कमजोरी लगातार बढ़ रही है।
विदेशी मुद्रा विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिकी डॉलर की मजबूती, अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरें और अंतरराष्ट्रीय निवेश धाराओं में बदलाव रुपया कमजोर होने के प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा, आयातित तेल और अन्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें भी रुपये पर दबाव डाल रही हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) इस गिरावट को नियंत्रित करने के लिए कदम उठा सकता है। बैंक संभावना जताई जा रही है कि RBI राज्य संचालित बैंकों के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप कर रुपये की मजबूती को बनाए रखने की कोशिश करेगा। RBI के हस्तक्षेप से बाजार में स्थिरता आने की उम्मीद जताई जा रही है।
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इस गिरावट का असर आयात और निर्यात पर भी पड़ सकता है। कंपनियों के लिए डॉलर में भुगतान महंगा होगा, जिससे उनके लागत भार में वृद्धि हो सकती है। वहीं, निर्यातकों के लिए स्थिति थोड़ी लाभकारी हो सकती है क्योंकि उन्हें डॉलर में अधिक रेवेन्यू मिलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की कमजोरी के बावजूद अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं और RBI की नीतियां इस दबाव को कम करने में मदद कर सकती हैं। निवेशकों को भी सतर्क रहने और बाजार के रुझानों पर ध्यान देने की सलाह दी जा रही है।
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