जापान में अगले प्रधानमंत्री के चयन को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के इस्तीफा देने की संभावना और उनकी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के कमजोर पड़ते आधार ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है।
इशिबा की एलडीपी और उसकी सहयोगी पार्टी, जो लंबे समय से जापान की राजनीति पर हावी रही हैं, ने उनके कार्यकाल के दौरान संसद के दोनों सदनों में अपना बहुमत खो दिया है। यही कारण है कि अब नए नेता का चुनाव केवल एलडीपी के भीतर का मामला नहीं रहेगा, बल्कि इसे व्यापक राजनीतिक सहमति और विपक्षी दलों के समर्थन की भी आवश्यकता होगी।
जापान में प्रधानमंत्री का चयन आमतौर पर संसद के बहुमत से होता है। यदि किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिले तो गठबंधन बनाना अनिवार्य हो जाता है। मौजूदा हालात में एलडीपी को न केवल अपने भीतर नए नेतृत्व पर सहमति बनानी होगी, बल्कि विपक्षी दलों और अन्य सहयोगियों से भी समर्थन हासिल करना पड़ेगा।
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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार प्रक्रिया अधिक खींची जा सकती है और आंतरिक गुटबाजी भी सामने आ सकती है। एलडीपी के भीतर कई वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी राजनीतिक पकड़ और जनसमर्थन है।
जापान की जनता भी इस बदलाव को गंभीरता से देख रही है क्योंकि देश आर्थिक चुनौतियों, क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों और सामाजिक सुधारों जैसे अहम सवालों से जूझ रहा है। ऐसे में नए प्रधानमंत्री का चयन न केवल राजनीतिक दृष्टि से बल्कि जापान के भविष्य की दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण होगा।
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