आंध्र प्रदेश के एसपीएसआर नेल्लोर जिले के करेडु गांव में हरे-भरे खेत और समुद्र से जुड़ी आजीविका के बीच अब एक बड़ी औद्योगिक छलांग की तैयारी चल रही है। यहां के किसान और मछुआरे सरकार द्वारा प्रस्तावित सौर ऊर्जा परियोजना के लिए किए जा रहे वृहद भूमि अधिग्रहण को लेकर गंभीर चिंता जता रहे हैं।
करेडु गांव की भूमि न केवल खेती के लिए उपजाऊ है, बल्कि यहां की बड़ी आबादी मछली पालन पर भी निर्भर है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर यह परियोजना पूरी तरह लागू होती है, तो उनकी पीढ़ियों से चल रही आजीविका को गहरा आघात पहुंचेगा।
हालांकि, सरकारी अधिकारी इस प्रोजेक्ट को राज्य के विकास और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम मानते हैं। उनका कहना है कि प्रभावित लोगों को पर्याप्त मुआवज़ा, पुनर्वास और वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किए जाएंगे।
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अधिकारियों का यह भी दावा है कि बातचीत के ज़रिए समाधान निकाला जाएगा और स्थानीय लोगों की सहमति से ही आगे कदम बढ़ाया जाएगा।
लेकिन गांववालों का भरोसा डगमगाया हुआ है। वे पूछते हैं — क्या विकास का अर्थ उनकी ज़मीन और पानी से वंचित होना है?
यह संघर्ष केवल एक गांव का नहीं, बल्कि उस बड़े सवाल का प्रतीक है कि क्या हरित भूमि का औद्योगीकरण सचमुच प्रगति है, या सिर्फ आंकड़ों का विस्तार।
सरकार और ग्रामीणों के बीच संवाद अब इस प्रश्न का उत्तर तय करेगा कि करेडु की पहचान खेतों से जुड़ी रहेगी या फैक्ट्रियों से।
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