वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मारिया कोरीना मचाडो हाल ही में आलोचनाओं के घेरे में आ गई हैं। मचाडो, जिन्हें लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए उनके संघर्ष के चलते यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद का विषय बन गई हैं। आलोचकों का कहना है कि उनकी कुछ राजनीतिक स्थितियाँ “शांति के सिद्धांतों” के विपरीत हैं।
आलोचना का प्रमुख कारण यह है कि मचाडो ने सार्वजनिक रूप से इज़राइल के गाज़ा पर बमबारी अभियान का समर्थन किया था। उन्होंने इसे “आत्मरक्षा का अधिकार” बताते हुए इज़राइल के पक्ष में बयान दिए, जबकि दुनिया भर में हजारों नागरिकों की मौत और मानवीय संकट को लेकर व्यापक निंदा हो रही है। उनके इस रुख को कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और शांति समर्थकों ने “असंवेदनशील” और “दोहरे मापदंड” वाला बताया है।
इसके अलावा, मचाडो ने पहले अपने देश वेनेज़ुएला में सरकार को गिराने के लिए विदेशी हस्तक्षेप की मांग की थी। आलोचकों का कहना है कि इस तरह की मांग किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है और इससे राष्ट्रीय संप्रभुता पर खतरा उत्पन्न होता है।
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हालांकि, मचाडो के समर्थकों का कहना है कि वह अपने देश में लोकतंत्र बहाल करने और तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका तर्क है कि उनके विचारों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद नोबेल समिति के चयन निर्णयों पर भी नए सिरे से बहस को जन्म दे सकता है।
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