ट्रंप प्रशासन ने मंगलवार को घोषणा की कि अमेरिका एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक एजेंसी यूनेस्को (UNESCO) से 2026 के अंत तक पूरी तरह से अलग हो जाएगा। यह एजेंसी विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण और शिक्षा, विज्ञान व संस्कृति के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने का कार्य करती है।
यह फैसला ट्रंप प्रशासन की उन नीतियों की कड़ी में देखा जा रहा है जिसमें अमेरिका ने पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और पेरिस जलवायु समझौते से खुद को अलग किया था। यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप प्रशासन यूनेस्को से बाहर निकला हो। अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रंप ने इसी तरह की दलीलों के साथ यूनेस्को से संबंध तोड़े थे, जिसमें उन्होंने अमेरिका के हितों के खिलाफ कार्य करने और एजेंसी द्वारा "इज़राइल विरोधी भाषण" को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। हालांकि, 2023 में बाइडन प्रशासन ने यूनेस्को में अमेरिका की वापसी करवाई थी और $600 मिलियन की पिछली देनदारियां चुकाने की प्रतिबद्धता जताई थी। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा कि यूनेस्को का ध्यान सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से "विवादित विषयों" पर है, जो ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट" विदेश नीति के विरुद्ध जाता है। उन्होंने आरोप लगाया कि यूनेस्को के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को बढ़ावा देना वैश्विक एजेंडा है, जो अमेरिका के हितों के अनुकूल नहीं है। 2011 में "फिलिस्तीन राज्य" को सदस्यता देने का निर्णय भी अमेरिका की नीति के विरुद्ध था और इससे इज़राइल विरोधी विचारों को मंच मिला, ऐसा प्रशासन का दावा है।
यूनेस्को का इतिहास और महत्व
यूनेस्को की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। वर्तमान में इसके लगभग 200 सदस्य देश और 12 सहयोगी सदस्य हैं। यह एजेंसी विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण के लिए जानी जाती है। यूनेस्को के अंतर्गत 1,248 धरोहर स्थलों को मान्यता प्राप्त है, जिनमें ताजमहल, गीज़ा के पिरामिड और नोट्र डेम कैथेड्रल शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि ये धरोहर स्थल "सभी लोगों की साझा संपत्ति" हैं, चाहे वे किसी भी देश में स्थित हों।
अमेरिका में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल
अमेरिका में कुल 26 विश्व धरोहर स्थल हैं जिनमें ग्रैंड कैन्यन, स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी, येलोस्टोन, ममथ केव और इंडिपेंडेंस हॉल जैसे महत्वपूर्ण स्थल शामिल हैं।
यूनेस्को पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
यूनेस्को के लिए यह फैसला आर्थिक और प्रतीकात्मक दोनों स्तरों पर बड़ा झटका है। अमेरिका अब तक एजेंसी के प्रमुख फंडिंग स्रोतों में से एक रहा है। इसके हटने से कई परियोजनाओं को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है, खासकर AI, तकनीकी शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में।
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अज़ोले ने अमेरिका के फैसले पर "गहरा खेद" व्यक्त किया, लेकिन कहा कि यह निर्णय अप्रत्याशित नहीं था। उन्होंने कहा कि 2018 से यूनेस्को ने संरचनात्मक सुधार किए हैं और अपने फंडिंग स्रोतों में विविधता लाई है, जिससे अमेरिकी योगदान अब केवल 8% तक सीमित रह गया है। उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए इज़राइल विरोधी आरोप आज की वास्तविकता से मेल नहीं खाते, क्योंकि यूनेस्को होलोकॉस्ट शिक्षा और यहूदी-विरोधी के खिलाफ सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
वैश्विक मंच पर यह फैसला अमेरिका की भूमिका को सीमित कर सकती है और चीन जैसे रणनीतिक प्रतिस्पर्धियों को अधिक प्रभावशाली बना सकती है। यूनेस्को जैसे मंच, जो वैश्विक मानकों को तय करते हैं, में अमेरिका की गैर-मौजूदगी न केवल सांस्कृतिक बल्कि तकनीकी दृष्टिकोण से भी एक बड़ी कमी मानी जा रही है।