बिहार में विशेष संशोधित मतदाता सूची (SIR) को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि मतदाता सूची के मसौदे में लगभग 65 लाख वैध मतदाताओं के नाम गायब हैं। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए गंभीर खतरा बताते हुए तुरंत सुधार की मांग की।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों का कहना था कि इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाना चुनावी पारदर्शिता और मताधिकार के मौलिक अधिकार का हनन है। उन्होंने अदालत से हस्तक्षेप कर सभी योग्य मतदाताओं के नाम सूची में बहाल करने का आदेश देने की मांग की।
वहीं, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि वह किसी भी वैध मतदाता को सूची से बाहर होने से रोकने के लिए “हर संभव कदम” उठा रहा है। आयोग ने बताया कि राज्य के सभी जिलों में सुधार प्रक्रिया चल रही है और जिन लोगों के नाम गलती से हटाए गए हैं, उन्हें वापस जोड़ा जा रहा है।
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चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची तैयार करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बूथ-स्तरीय अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए गए हैं और आम जनता को अपने नाम जांचने तथा सुधार के लिए पर्याप्त समय और साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए चुनाव आयोग से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और कहा कि मतदाता सूची की शुद्धता लोकतंत्र की नींव है। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सुधार कार्य में तेजी लाई जाए ताकि आगामी चुनावों में किसी भी योग्य नागरिक को मताधिकार से वंचित न होना पड़े।
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