भारत में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता को लेकर वर्षों से प्रयास जारी हैं, लेकिन नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि देश के निजी स्कूलों में अब भी लड़कों की संख्या लड़कियों से अधिक है। यह रुझान शिक्षा में लिंग आधारित असमानता की ओर इशारा करता है।
राष्ट्रीय शैक्षिक सर्वेक्षण (U-DISE+) के अनुसार, 2023-24 सत्र में निजी विद्यालयों में दाखिल छात्रों में करीब 54% लड़के और 46% लड़कियाँ हैं। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में यह असंतुलन स्पष्ट है, हालांकि ग्रामीण इलाकों में यह अंतर और भी व्यापक रूप से देखा गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस अंतर का प्रमुख कारण सामाजिक-आर्थिक धारणाएँ और पारिवारिक प्राथमिकताएँ हैं। कई परिवारों में लड़कियों की शिक्षा को अनावश्यक व्यय माना जाता है, खासकर जब निजी स्कूलों में शुल्क और अन्य खर्चे अधिक होते हैं।
इसके अतिरिक्त, कई परिवार लड़कियों को नजदीकी सरकारी स्कूल में भेजना बेहतर समझते हैं, जबकि लड़कों को बेहतर सुविधा वाले निजी स्कूलों में भेजा जाता है। यह प्रवृत्ति शिक्षा के अधिकार और समान अवसर जैसे सिद्धांतों को चुनौती देती है।
हालांकि सरकारी नीतियाँ लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयासरत हैं, लेकिन निजी शिक्षा क्षेत्र में यह अंतर अब भी बना हुआ है। नीति-निर्माताओं को लिंग संतुलन लाने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता है, ताकि सभी बच्चों को समान शिक्षा का अवसर मिल सके।