केंद्र सरकार ने गुरुवार (30 अक्टूबर 2025) को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में कहा कि वह ग्रेट निकोबार द्वीप की मेगा अवसंरचना परियोजना के पर्यावरण और जैवविविधता पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों से पूरी तरह अवगत है और इसके लिए दीर्घकालिक संरक्षण और शमन (Mitigation) योजना तैयार की गई है।
सरकार की ओर से पेश हुई अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि “मुख्य सवाल यह नहीं है कि प्रभाव होगा या नहीं, बल्कि यह है कि क्या सरकार इन प्रभावों को समझती है और उनका समाधान कर रही है या नहीं — और हम पूरी तरह सजग हैं।” उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने इस परियोजना के साथ तीन दशकों तक चलने वाले निगरानी और संरक्षण कार्यक्रम को अनिवार्य किया है।
भाटी ने आगे कहा, “हमने इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए देश और दुनिया के सर्वोत्तम वैज्ञानिक संसाधनों को शामिल किया है, जो अनुसंधान करेंगे, शमन उपाय सुझाएंगे और पूरे तीस वर्षों तक मार्गदर्शन करेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि यह परियोजना “राष्ट्र की एक बड़ी परिसंपत्ति” बनने जा रही है।
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इस बीच, पर्यावरणविद् आशीष कोठारी द्वारा दायर एक याचिका में परियोजना को दी गई मंजूरियों को चुनौती दी गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि परियोजना ने आइलैंड कोस्टल रेगुलेशन जोन (ICRZ) अधिसूचना, 2019 का उल्लंघन किया है और इसके पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) में कई कमियां हैं।
सरकार का कहना है कि यह परियोजना विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाते हुए देश के रणनीतिक और आर्थिक हितों को आगे बढ़ाएगी।
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